🏛️ न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई – न्यायपालिका के नए युग का चेहरा
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने पदभार संभालते ही न्यायपालिका में एक नई उम्मीद और दिशा का संचार किया है।
वे न केवल अपने निर्णयों के लिए बल्कि अपनी सादगी, स्पष्ट विचारधारा और संवैधानिक मूल्यों के प्रति अटूट आस्था के लिए भी जाने जाते हैं।
🌿 शुरुआती जीवन और परिवार
भूषण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को अमरावती (महाराष्ट्र) में हुआ था।
वे एक दलित बौद्ध परिवार से आते हैं। उनके पिता आर. एस. गवई महाराष्ट्र के प्रसिद्ध समाजसेवी, राजनीतिज्ञ और पूर्व राज्यपाल रहे हैं।
बचपन से ही गवई ने सामाजिक न्याय और समानता के विचारों को करीब से देखा और समझा — यही सोच आगे चलकर उनके न्यायिक दृष्टिकोण की नींव बनी।
⚖️ न्यायिक सफर
न्यायमूर्ति गवई ने अपने करियर की शुरुआत बॉम्बे उच्च न्यायालय से की।
14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 12 नवंबर 2005 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए।
लगातार न्यायिक उत्कृष्टता के कारण 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में जज नियुक्त किया गया।
इसके बाद 14 मई 2025 को वे भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बने।
वे भारतीय इतिहास में पहले बौद्ध धर्म से जुड़े CJI हैं और दूसरे दलित समुदाय से आने वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने यह सर्वोच्च पद प्राप्त किया।
🌟 विचारधारा और दृष्टिकोण
CJI गवई का मानना है कि भारत की न्याय प्रणाली “Bulldozer Rule” से नहीं बल्कि “Rule of Law” (कानून के शासन) से चलनी चाहिए।
उनके अनुसार न्यायपालिका का मूल उद्देश्य सत्ता को जवाबदेह बनाना और आम नागरिक को न्याय दिलाना है।
उन्होंने हाल ही में कहा —
“CJI सर्वोच्च न्यायालय का स्वामी नहीं, बल्कि समान न्यायाधीशों में पहला है।”
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि वे न्यायपालिका को सहयोग, पारदर्शिता और समानता के आधार पर चलाना चाहते हैं।
🚨 विवाद और हालिया घटना
अक्टूबर 2025 में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच में एक वकील ने गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया।
यह घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बनी।
Bar Council of India (BCI) ने तुरंत कार्रवाई करते हुए उस वकील को निलंबित कर दिया।
गवई की माँ और बहन ने इसे “संविधान पर हमला” बताया और न्यायपालिका के सम्मान की रक्षा की अपील की।
CJI गवई ने इस घटना को संयम और गरिमा के साथ संभाला और कहा कि —
“न्यायपालिका पर हमला केवल व्यक्तियों पर नहीं, बल्कि संविधान पर प्रहार है।”
💬 न्यायपालिका में पारदर्शिता की मांग
CJI गवई ने कई अवसरों पर यह कहा है कि न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार, देरी और तकनीकी बाधाएँ जनता का विश्वास कमजोर करती हैं।
वे ई-कोर्ट्स, डिजिटल फाइलिंग और जनसुलभ न्याय को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं।
उनकी प्राथमिकता न्याय को तेज़, पारदर्शी और सुलभ बनाना है।
उम्मीदें और चुनौतियाँ
न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल भले ही कुछ महीनों का है, लेकिन यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वे ऐसे समय में CJI बने हैं जब न्यायपालिका पर जन विश्वास, मीडिया ट्रायल और सोशल मीडिया की आलोचना — तीनों का दबाव है।
उनकी सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे न्यायिक गरिमा और लोकतांत्रिक मर्यादा के बीच संतुलन बनाए रखें।
🌈 निष्कर्ष
CJI भूषण रामकृष्ण गवई आज सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि न्याय, समानता और संवैधानिक आदर्शों के प्रतीक बन चुके हैं।
उनकी कहानी यह संदेश देती है कि —
Article : Santosh Singh Taretiya
“संघर्ष की मिट्टी से निकला इंसान भी एक दिन देश की सबसे ऊँची कुर्सी तक पहुँच सकता है।”
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